यह कैसी सिरपच्ची ?

 

रोते को चुपाना : 1

(लेखक: गिजुभाई बघेका)

(अनुवाद: काशिनाथ त्रिवेदी)

 

“सुनते हैं?  मैं तो इसको झुलाते-झुलाते थक रही हूँ। मेरे हाथ दुखने लगे

हैं ।  पता नहीं,  ये कैसे अभागे बच्चे हैं?  दिन-मर तो हैरान और परेशान करते ही हैं,

अब रात में भी सोने नहीं दे रहे। लीजिए,  अब यह डोरी आप ही खींचिए।

मैं तो सोती हूँ । आपको न खींचनी हो, तो मत खींचिए । सुबह तक थक कर सो जाएगा ।’

भानुप्रसाद ने पालने की डोरी अपने हाथ में ले ली ।  वे भले आदमी थे।

उन्होंने बच्चे को झुलाना शुरू कर दिया ।

 

नन्हा चन्दू थोड़ी देर के लिए चुप रहता और फिर चीखकर रोने लगता।

भानुप्रसाद ज़रा जोर से झुलाना शुरू करते, तो चन्दू कुछ देर के लिए चुप रह

जाता, और बाद में फिर रोने लगता ।

 

भानुप्रसाद भी थके। बोले: ‘पता नहीं, आज इस चन्दू को क्‍या हुआ है!

इस तरह सारी रात तो यह कभी रोता नहीं है । देखूँ, इसके पालने पर तो थोड़ी

निगाह डालूँ ।

 

भानुप्रसाद ने दीए के उजाले में पालने पर नज़र दौड़ाई ।  देखा कि अन्दर

ख़टमलों की कतारें लगी हैं। अनगिनत खटमल ! सब के सब बेचारे चन्दू का खून

चूसने में लगे थे ।

 

भानुप्रसाद ने चन्दू को उसकी माँ की बग़ल में सुला दिया। चन्दू तुरन्त ही

सो गया । चन्दू की माँ भी सो गई । पिता भी गहरी नींद में सो गए ।

साँझ पड़ी ।  दीया-बत्ती का समय हुआ ।  तभी कोई एक साल की उमर

वाली विजया ने रोना शुरू किया ।

 

माँ बोली :  “इस विजया ने फिर अपना समय साध लिया! रोज़-रोज़

यह रोना कैसे सहा जाए ?’

 

मौसी ने कहा:  “शाम के समय तो बच्चे रोते और मचलते ही हैं। इस

घबराने से तो काम चलेगा नहीं ।  यह तो इन छोटे बच्चों की परवरिश का मामला है।‘

पिता बोले :  “कोई इन बच्चों को सँभालना जानता भी है ? कुछ देर के लिए

झुनझुना बजाइए,  चूसनी थमा दीजिए । देखें, बच्चा चुप कैसे नहीं होता है?

छोटी बहन ने कहा :  “बड़े भैया ! आप क्यों परेशान हो रहे हैं?

यह तो रोज़ ही रोती है ।  कुछ देर तक रोने के बाद अपने आप थक जाएगी।’

 

विजया बराबर रोती रही । झुनझुना बजाया,  पर उसको सुने कौन?

खिलौना दिखाया,  पर उसकी तरफ देखे कौन ?  वह तो अपनी आँखें मलती जाती

और रोती रहती ।

 

पिता ने कहा:  “कल इसको डॉक्टर के पास ले जाना होगा।’

माँ बोली:  “भला, इसमें डॉक्टर क्या करेंगे ? यह कम्बख्त तो ऐसी ही

ज़िद्दिन है ।’

 

मौसी ने कहा:  “यह तो अभी पहली ही बच्ची है। इसको लेकर आप सब

इतने परेशान हैं । जब मेरी तरह चार-पाँच बच्चे होंगे,  तो आप क्या करेंगे ?’

इतने में दादी माँ दर्शन करके लौटीं ।’

 

पिता ने कहा:  “अम्माज़ी ! इस विजया को ज़रा सँभालिए ।  यह बड़ी देर

से रो रही है ।’

 

दादी-माँ बोलीं:  ‘आं जाओ, मेरे बेटे, मेरी विजया; आ जाओ आओ ! ’

दादी माँ ने विजया को अपनी गोंद में ले लिया । अपने कन्धे पर उच्हों

विजया का सिर टिका दिया ।  वे अपने हाथ से विजया की पीठ थपथपाने लगी ।

बोलीं : ‘आ-हा-हा ! सो जाओ,  मेरे शेर ! सो जाओ,  मेरी बिटिया ।’

जल्द ही विजया ने रोना बन्द कर दिया और वह सो गई ।’

दादी माँ ने कहा : ‘यह न तो मचल रही थी, न ज़िद ही कर रही थी ।’

इसको तो नींद आ रही थी; और इसीलिए यह रो रही थी । शाम को जब बच्चों को

नींद आने लगती है,  तो वे रोना शुरू कर देते हैं ।  वे दूध पीना चाहें,  तो थोड़ा दूध

पिलाकर उनको इस तरह कन्धे पर लेकर सुला दें,  तो वे सो जाते हैं ।’

 

पढ़ा, पढ़ा, भला, तुम क्या पढ़ोगे ? (2)

बालक हाथ में एक बड़ी किताब लेकर क,प,ड,च, जैसे अक्षरों को पढ़ रहा

है। उसने कुछ नए अक्षर सीख लिए हैं, इसलिए उसके मन में पढ़ने की बड़ी उमंग है ।’

किताब बड़ी हो, चाहे छोटी हो, अक्षर पढ़ने के लिए तो दोनों उसके मन बराबर।

बालक बोला : ‘पिताजी ! मैं पढ़ रहा हूँ।’ बालक क्या पढ़ रहा है,

इसको जाने-समझे बिना ही पिताजी ने कहा :

“पढ़ा, पढ़ा, भला, तुम क्या पढ़ोगे ?

‘ पढ़ने के लिए इतनी बड़ी किताब क्‍यों ली है ?

जाओ, “बाल पोथी पढ़ो !”

 

बालक अपने पिता से कहता है : ‘पिंताजी ! चलिए, देखिए, वह छिपकली

उस पतंगे को खा रही है ! देखने लायक है ।  चलिए, चलिए;  नई चीज़ हैं ।

देख लीजिए।’

 

पिताजी के लिए इसमें कोई चमत्कार था नहीं। बालक के लिए तो सब कुछ

नया ही था । बालक अपने पिता को ले जाकर अपने नए ज्ञान के आनन्द में उनको

अपना भागीदार बनाना चाहता है ।  पिता के लिए तो यह युगों पुरानी बात है ।

पिता बोले :  “भई,  इसमें देखना ही क्या है ? छिपकली तो पतंगे को ही

खाएगी न ? तुम कौन बड़े अचम्भे की बात कहने आए हो! जाओ, अपना सबक़

याद करो, सबक़ !

 

इस तरह अकसर हम॑ अपने बालकों को दुतकार और फटकार देते हैं ।

उनके मन की बात की समझे बिना उनकी टीका-टिप्पणी करने लगते हैं। उनके बारे

में न. कहने लायक बातें भी कहते हैं । उनका अपमान करते हैं। उनको अपनी

सहानुभूति नहीं देते। उलटे, उनके और अपने बीच ग़लतफहमी पैदा कर लेते हैं ।

फासला बढ़ा लेते हैं । थोड़ा समय निकालकर, तनिक बालक की निगाह से सब कुछ

देखकर, हम उसके आनन्द में सहभागी बनेंगे,  हम उसको अपनी सहानुभूति देंगे,

तो हम अपने बालक के अन्तर को अधिक सुखी बना सकेंगे,

उसको अधिक अपना बना सकेंगे ।